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हाइकु 103 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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घर-बा‘रै आ
पण मत खो दिये
नारीपणो थूं
नारी-प्रकृति
रच, अमर हुयो
सृस्टि-रचारो
माॅड बण थूं
माथै बिंदी ना त्याग
भारत-नारी