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सहसा / महेन्द्र भटनागर
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आज तुम्हारी आयी याद,
मन में गूँजा अनहद नाद !
बरसों बाद
बरसों बाद !
साथ तुम्हारा केवल सच था,
हाथ तुम्हारा सहज कवच था,
सब-कुछ पीछे छूट गया, पर
जीवित पल-पल का उन्माद !
आज तुम्हारी आयी याद !
बीत गये युग होते-होते,
रातों-रातों सपने बोते,
लेकिन उन मधु चल-चित्रों से
जीवन रहा सदा आबाद !
आज तुम्हारी आयी याद !