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हाइकु 108 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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तिरणो है तो
गै‘रै सागर तिर
आणंद आसी
मोमाखी भी
करै है भिण-भिण
छातो छेड़िया
सुपनो चावै
सुख रो कै दुख रो
जीवणो पड़ै