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हाइकु 135 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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घर-घर में
अहल्या ई अहल्या
श्रीराम कठै?
जे चावो सेवा
सागै लावो थे मेवा
म्है धन देवा
भ्रस्टाचार है
सुरसा रो मुखड़ो
सो गळगप्प