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हाइकु 182 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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अहिंसा पाळो
हत्या करा‘र भी थे
खुल‘र हांसो


नेताजी कै‘वै
‘‘छाण रिगत पीवां
साकाहारी हां’’


जाग जा अबै
सांसा उडै है रूई ज्यूं
नीं रूकै रोक्यां