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हाइकु 185 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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भाग्य‘र कर्म
सिक्के रा है दो पाखा
सागै ई चालै
डावी जीवणी
दो आंख्यां जीवण री
फेर भेद क्यूं ?
बोली लगाओ
मनचावा खरीदो
मिनख मंडी