भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निष्कर्ष / आहत युग / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:26, 18 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर }} उस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसी ने छला
अंध जिस पर भरोसा किया,
उसी ने सताया
किया सहज निःस्वार्थ जिसका भला !

उसी ने डसा
दूध जिसको पिलाया,
अनजान बन कर रहा दूर
क्या खूब रिश्ता निभाया !

अपरिचित गया बन
वही आज
जिसको गले से लगाया कभी,
अजनबी बन गया
प्यार,
भर-भर जिसे गोद-झूले झुलाया कभी !

हमसफ़र
मुफलिसी में कर गया किनारा,
ज़िन्दगी में अकेला रहा
और हर बार हारा !