भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुचैं सरग खरै ग्या / लोकेश नवानी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:16, 30 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लोकेश नवानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKCatGadhwaliKavita

चला दाथि संभाळा चला कूटि संभाळा
चुचैं सरग खरै ग्या।
ऐगे उदंकार स्यो अधेंरु छीजि गे।
मारि कि किलक्वार सरा गौं हि बीजि गे।
बिसगुण हेरि कि घाम कन छितरै ग्या।
चुचैं सरग खरै ग्या।
बादळों कि वाड़ि बटे कन लुकाचोरी
सूरज कनू च देखा बेर हि बेरी
धाणि कु जिमदन च जांदि गाड तरै
चुचैं सरग खरै ग्या।
माटा कि कोखी मा कखी बीज बीजिगे
नै पराण का नयो संगीत पैजिगे
झपझिपी बिज्वाड़ वार प्वार सरै द्या।
चुचैं सरग खरै ग्या।
सट्टि का सेरौं मा चला कूल खियोंला
खेती कु मळसू व घैण चाला छंट्योंला
हेरि कूटि की मुखड़ी खैड़ जरै ग्यौ
चुचैं सरग खरै ग्या।
लमसट फांग्यूं मा ह्वेकि झुंगरु मुलकणू
ज्वान कोदू नाचि नाचि कै च खितकणू
बिद्दु ह्नेगे छांतु छ्वाड़ जनै रडै़ द्या।
चुचैं सरग खरै ग्या।
खैरि खै पस्यो ब्वगै जगोळि सदान
ह्नेगे कौणि चीणा मर्सु सट्टि जवान
पैजि गे फसल नै नवांण करै द्या।
चुचैं सरग खरै ग्या।
खल्याण्यूं मंदर्यूं अबा अन्न पैजिगे
बन बनिका फूलु कु कौथीग वीरिगे
कै सम्हाळ कै बिटोळु मन रकरे ग्या।