भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने जीवन में क्यों हैं जंजाल इतने दूर हो तुझसे बीतेंगे साल कितने

काम हैं जितने उतने इलजाम भी हैं फूटती सुबहें हैं तो ढलती शाम भी है भर छाती धंसकर जीता हूं जीवन कभी ये नियति देती उछाल भी हैं

जाने...

फैज इधर हैं उधर खय्याम भी हैं लहरों पर पीठ टेके होता आराम भी है खट-खट कर कैसे राह बनाता हूं थोड़ी जानता हूं आगे बैठा भूचाल भी है

जाने...

दिल्ली,97