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एक तुम्हारे जाने से / रंजन कुमार झा
Kavita Kosh से
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दिल से रिक्त हुआ ज्यों सीना
एक तुम्हारे जाने से
वासंती थी फ़िजा-छटाएँ, मन -मयूर के घन तुम थे
ग्रीष्म ऋतु में सर्द हवा की बहकी हुई छुअन तुम थे
अब न रहा वो साल-महीना
एक तुम्हारे जाने से
चार नयन दो मधुर ख्वाब के बुनते आए जाले थे
पास हृदय था और नहीं कुछ प्रेम-गान मतवाले थे
टूट गई वो मधुरिम वीणा
एक तुम्हारे जाने से
नीड़ एक करने की जिद थी, चाह रही हम साथ रहें
सुख-दुख की सारी घड़ियाँ में, लिए हाथ में हाथ रहें
रास न आता है अब जीना
एक तुम्हारे जाने से