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जिजीविषु / महेन्द्र भटनागर
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अचानक
आज जब देखा तुम्हें _
कुछ और जीना चाहता हूँ!
गुज़र कर
बहुत लम्बी कठिन सुनसान
जीवन-राह से,
प्रतिपल झुलस कर
ज़िन्दगी के सत्य से
उसके दहकते दाह से,
अचानक
आज जब देखा तुम्हें _
कड़वाहट भरी इस ज़िन्दगी में
विष और पीना चाहता हूँ!
कुछ और जीना चाहता हूँ!
अभी तक
प्रेय!
कहाँ थीं तुम?
नील-कुसुम!