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हो पिया सै रात अंधेरी, और जंगल बियाबान / मास्टर नेकीराम

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हो पिया सै रात अंधेरी, और जंगल बियाबान,
कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी, ।। टेक ।।

मनैं नहीं गया कुछ कह, नयनों से नीर बह,
हो पिया होग्यी सुबह भतेरी, और आया ना मैहमान,
कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।।

लाली झडग़ी रूप-हुस्न की, बाट देख-देख साजन की,
हो पिया मेरे तन की होग्यी ढ़ेरी, और भावै ना जलपान,
कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।।

मनैं नहीं कुछ खबर, संग म्हं जुल्म हो गया जबर,
हो पिया कदै आज्या बब्बर केहरी, और लेले मेरी जान,
कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।।

कैसे पूज्यूं दई धाम, यत्न बताओ नेकी राम,
हो पिया माला गुरू नाम की फेरी, और गाऊं सू गुनगान,
कित छोड़ डिगरग्या मनैं बेदर्दी।।