भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुशा जलवाए नौबहारे-वतन / मेला राम 'वफ़ा'
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 11 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेला राम 'वफ़ा' |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ख़ुशा जलवाए नौबहारे-वतन
ख़ुशा मंज़रे लाला-ज़ारे-वतन
बयां क्या हो शाने-बहारे-वतन
है गुल-पोश हर रहगुज़ारे-वतन
बहारे-जिनां भी मुसल्लम, मगर
बहारे-वतन है बहारे-वतन
कली दिल की बेसाख़्ता खिल गई
जब आई बहारे-दयारे-वतन
वो ग़ुरबत की सब कुल्फ़तें मिट गयीं
नज़र आ गया जब ग़ुबारे-वतन
वो मखदूम-अहले-वतन क्यों न हो
जो दिल से है ख़िदमत-गुज़ारे-वतन
यही है यही हासिले-ज़िन्दगी
'वफ़ा' ज़िन्दगी हो निसारे-वतन