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प्रो निसार अटावी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
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तर्वीज़े-ज़बान और खिदमते-अदब के लिए उर्दू ज़बान शुअरा-ए-पंजाब की हमेशा गिरांबारे-मिन्नत रहेगी। आज भी वहां मुतअद्दिद अहले-फ़िक्र-ओ-सुख़न इस काम में मसरूफ हैं। उन्हीं दिलदादगाने-शेर-ओ-सुख़न में हज़रत रतन पंडोरवी का नामे-गिरानी सरे-फेहरिस्त नज़र आता है। मौसूफ़ एक साहिब दिल बुजुर्ग और उस्तादे-फ़न हैं। उन की शायरी मर्कजे-तसव्वुफ़ और बेदान्त के वो उसूल हैं जो दैर-ओ हरम की सरहदों से दूर अपनी दुनिया बसाते हैं। उन का मसलक एक सूफ़ी या एक ऋषि का मसलक है।