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कुछ लज़्ज़ते-अशआर की ख़्वाहिश लाई / रतन पंडोरवी

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कुछ लज़्ज़ते-अशआर की ख़्वाहिश लाई
कुछ ख़ूबीए-गुफ्तार की ख़्वाहिश लाई
मैं और ये रंगीन मजालिस तौबा
अहबाब के दीदार की ख़्वाहिश लाई।

है अर्ज़-ए-तमन्ना की तमन्ना दिल में
मव्वाज है जज़्बात का दरिया दिल में
खोली है ज़बां कशफे-हक़ीक़त के लिए
जो सर में था अब है वही सौदा दिल में।

ख़्वाहिश है सुकूं की तो कनाअत सीखो
हाजात को कम करने की आदत सीखो
ज़ाहिर की नुमाइश है सरासर धोखा
ये तर्क करो और सदाक़त सीखो।

सद शुक्र कि अब हम ने भी नंगल देखा
इस ख़ाक़ पे जंगल में ये मंगल देखा
हर शय को यहां देख के कहता हूँ 'रतन'
तक़दीर का तदबीर से दंगल देखो