रात (दोहे) / प्रणव मिश्र 'तेजस'
मुख पर बिखरे केश हैं,कर में एक सितार।
अनहद धुन में रात अब,उगल रही असरार।1।
तारों की लिपि में करे,अक्सर मुझसे बात।
प्रियतम तुम से तो कहीं,भली लगे यह रात।2।
चाँद सितारे बिक गए,अचरज में संसार।
अमावसी की रात में, रात करे व्यापार।3।
लिए तमाखू हाथ में, पीट रही थी रात।
चिलम जला उट्ठा धुआँ,ऐसे हुआ प्रभात।4।
ख़त में लिक्खा रात ने,मिलने की है चाह।
मगर साथ ये भी लिखा,पहरे पे है माह।5।
उसके नाजो-नक्श में,शायर कई असीर।
नींद-ख़्वाब से है अलग,उसका एक शरीर।6।
दरवाजे पे रात में, आख़िर आया कौन।
हमने देखा झाँक कर,खड़ी रात थी मौन।7।
रात बड़ी शैतान है,करती है गुमराह।
पथिक भले सब याद कर,निकले अपनी राह।8।
बिंदी उसकी चाँद है,धरती उसके पाँव।
शर्मीली सी अप्सरा,दुनिया उसका गाँव।9।
लेती जब आगोश में,जाता सब-कुछ भूल।
छिपा पैरहन में रखे,रात हज़ारों फूल।10।
अंधेरे से रात ने,वादे किये हज़ार।
मुक़र गई पर रात भी,नये मिले जब यार।11।
अंधेरा मैकश हुआ,पीने लगा शराब।
आसमान पर हर तरफ,बिखरे उसके ख़्वाब।12।
बिखरे-बिखरे केश हैं,बहकी-बहकी चाल।
दहका-दहका जिस्म है,लगती बड़ी कमाल।13।
उसके भीगे केश तो,सारा मौसम सर्द।
उसके सूखे केश तो,गुलशन-गुलशन जर्द।14।
गौर करो कुछ भी नहीं,अंधेरे के पास।
लेकिन सब मौजूद है,जिसकी मुझे तलाश।15।
दोनों करते इश्क़ पर,दोनों हैं ख़ामोश।
दोनों को दुनिया कहे,यारो ख़्वाब-फ़रोश।16।
बैठ किसी चट्टान पर,जब-जब रोवे रात।
तब-तब भीगे विश्व यह,लोग कहें बरसात।17।
बँधी हुई है रौशनी, नियत हैं उसके काम।
रात बहुत है आलसी, करती बस आराम।18।
खुद ही करती व्यक्त सब,खुद ही करती बात।
मैं क्या लिक्खूँ रात को,लिखती मुझको रात।19।
बेटी उसकी साँझ है,और सूर्य दामाद।
उसके बेटे वृक्ष हैं, जग सारा प्रासाद।20।