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जल्वों की अरज़ानी कर दो / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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जल्वों की अरज़ानी कर दो
रोज़-ओ-शब नूरानी कर दो
चेहरे से आंचल को हटा कर
चांद को पानी पानी कर दो
छू कर अपने हाथ से मुझ को
फ़ानी से लाफ़ानी कर दो
बख्श़ दो सुब्हों को ताबानी
शामों को रूहानी कर दो
बेसुध जोड़े नाच रहे हैं
रक्स़ की लय तूफ़ानी कर दो
गुल करके इन रौशनियों को
कुछ लम्हे नूरानी कर दो
उस महफ़िल में अर्ज किसी दिन
अपनी राम कहानी कर दो
हिज्र में जीने वालों पर अब
वस्ल को भी इम्कानी कर दो
बज्म़े-सुख़न में तुम भी 'रहबर`
कुछ गौहर-अफ्श़ानी कर दो