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कोई भूला हुआ ग़म दिल में बसाये रखना / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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 कोई भूला हुआ गम़ दिल में बसाये रखना
इस ख़राबे में कोई जोत जगाये रखना

मैं पलट आऊंगा परदेस से इक रोज़ ज़रूर
आस के दीप मँडेरों पे जलाये रखना

ग़म की यूरुश में भी हंसता हूं कि फ़ित्रत है मिरी
रेगज़ारों में भी कुछ फूल खिलाये रखना

ज़ीस्त को और भी दुश्वार बना देता है
चंद यादों को कलेजे से लगाये रखना

सुब्ह के शोख उजालों से मिरा रिश्ता है
मेरे घर में न क़दम शाम के साये रखना

फिर कोई गर्म हवा तुम को नहीं छू सकती
तुम मिरी बात के मफ़्हूम को पाये रखना

मैं भी पलकों पे सितारों को करूंगा रौशन
तुम भी बुझती हुई शम्ओं को जलाये रखना

तुम कन्हैया हो न मैं राधा हूं फिर भी मुझ को
बांसुरी जान के होंटों से लगाये रखना

बस यही शेवा-ए-अर्बाबे-वफ़ा है यारों
उस की चौखट पे सरे-शौक़ झुकाये रखना

शौक़ से चाहो किसी ज़ुहरा-बदन को 'रहबर`
दौलते-दिल से मगर हाथ उठाये रखना