भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़क़ीरों से कुछ मांगना चाहता हूँ / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:56, 14 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेंद्र नाथ 'रहबर' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 फ़क़ीरों से कुछ मांगना चाहता हूं
अंधेरे में कोई दिशा चाहता हूं

जो मंज़िल पे मेरी मुझे ले के जाये
मैं ऐसा कोई रहनुमा चाहता हूं

दरीदा हुये हैं ये कपड़े बदन के
मैं चोला कोई अब नया चाहता हूं

नहीं सिर्फ अपना भला चाहता मैं
ख़ुदाई का मैं तो भला चाहता हूं

तेरे नूर की मुझ पे बारिश हो हर दम
मैं सर ता क़दम भीगना चाहता हूं

नहीं है किसी और शय की तमन्ना
तेरे दर का मैं तो पता चाहता हूं

दिखाये अंधेरे में जो राह मुझ को
कोई ऐसा रौशन दिया चाहता हूं

मैं मेले की रौनक़ में गुम हो न जाऊं
तेरे हाथ को थामना चाहता हूं

निशां उस के क़दमों के जिस पर हों 'रहबर`
मैं उस ख़ाक को चूमना चाहता हूं