भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं ने जब लिखना सीखा था / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:53, 14 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=पह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं ने जब लिखना सीखा था
पहले तेरा नाम लिखा था
मैं वो सब्र-ए-समीम हूँ जिस ने
बार-ए-अमानत सर पे लिया था
मैं वो इस्म-ए-अज़ीम हूँ जिस को
जिन ओ मलक ने सज्दा किया था
तू ने क्यूँ मिरा हाथ न पकड़ा
मैं जब रस्ते से भटका था
जो पाया है वो तेरा है
जो खोया वो भी तेरा था
तुझ बिन सारी उम्र गुज़ारी
लोग कहेंगे तू मेरा था
पहली बारिश भेजने वाले
मैं तिरे दर्शन का प्यासा था