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चांद अभी थककर सोया था / नासिर काज़मी
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चांद अभी थककर सोया था
तारों का जंगल जलता था
प्यासी कूँजों के जंगल में
मैं पानी पीने उतरा था
हाथ अभी तक कांप रहे हैं
वो पानी कितना ठंडा था
आंखें अब तक झांक रही हैं
वो पानी कितना गहरा था
जिस्म अभी तक टूट रहा है
वो पानी था या लोहा था
गहरी गहरी तेज़ आंखों से
वो पानी मुझे देख रहा था
कितना चुप-चुप, कितना गुमसुम
वो पानी बातें करता था।