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तनहाई का दुख गहरा था / नासिर काज़मी
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तनहाई का दुख गहरा था
मैं दरिया-दरिया रोता था
एक ही लहर न सम्भली वरना
मैं तूफानों से खेला था
तनहाई का तन्हा साया
देर से मेरे साथ लगा था
छोड़ गये जब सारे साथी
तन्हाई ने साथ दिया था
सुख गई जब सुख की डाली
तनहाई का फूल खिला था
तनहाई मिरे दिल की जन्नत
मैं तन्हा हूँ, मैं तन्हा था
वो जन्नत मिरे दिल में छुपी थी
मैं जिसे बाहर ढूंढ रहा था।