भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहुंचे गोर किनारे हम / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 18 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=बर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहुंचे गोर किनारे हम
बस ग़मे-दौरां हारे हम

सब कुछ हार के रस्ते में
बात गये दुखयारे हम

हर मंज़िल से गुज़रे हैं
तेरे ग़म के सहारे हम

देख ख़याले-ख़ातिरे-दोस्त
बाज़ी जीत के हारे हम

आंख का तारा आंख में है
अब ना गिनेंगे तारे हम।