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फिर नई फ़स्ल के उनवां चमके / नासिर काज़मी
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फिर नई फ़स्ल के उनवां चमके
अब्र गरजा, गुले-बारां चमके
आंख झपकूँ तो शरारे बरसें
सांस खेंचूं तो रगे-जां चमके
क्या बिगड़ जायेगा ऐ सुबहे-जमाल
आज अगर शामे-गरीबां चमके
ऐ फ़लक भेज कोई बर्के-ख़याल
कुछ ति शामे-शबे-हिज्रां चमके
फिर कोई दिल को दुखाये 'नासिर'
काश ये घर किसी उनवां चमके।