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सुनाता है कोई भूली कहानी / नासिर काज़मी

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सुनाता है कोई भूली कहानी
महकते मीठे दरियाओं का पानी

यहां जंगल थे आबादी से पहले
सुना है मैंने लोगों की ज़बानी

यहां इक शहर था शहरे-निगारां
न छोड़ी वक़्त ने उसकी कहानी

मैं वो दिल हूँ दबिस्ताने-अलम का
जिसे रोयेगी सदियों शादमानी

तसव्वुर ने उसे देखा है अक्सर
खिरद कहती है जिसको लामकानी

ख़यालों ही में अक्सर बैठे बैठे
बसा लेता हूँ एक दुनिया सुहानी

हुजूमे-नश्श-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न में
बदले जाते हैं लफ़्ज़ों के मआनी

बता ऐ ज़ुल्मते-सहरा-ए-इम्कां
कहां होगा मेरे ख्वाबों का सानी

अंधेरी शाम के पर्दों में छुप कर
किसे रोती है चश्मों की रवानी

किरनपरियाँ उतरती हैं कहां से
कहां जाते हैं रस्ते कहकशानी

पहाड़ो से चली फिर कोई आँधी
उड़े जाते हैं औराके-खिज़ानी

नई दुनिया के हंगामों में 'नासिर'
दबी जाती हैं आवाज़ें पुरानी।