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छोटी सी झोंपड़ी हो या ख़स्ता मकां रहे / ईश्वरदत्त अंजुम
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छोटी सी झोंपड़ी हो या ख़स्ता मकां रहे
कुछ तो मिरे लिए भी ऐ हिन्दोस्तां रहे
तेरी नवाजिशों का तलबगार था मगर
दरपेश हर क़दम पे मुझे इम्तिहां रहे
आईं रहे-तलब में हमें लाख मुश्किलें
फिर भी तिरी तलाश में हम तो रवां रहे
वतने-अज़ीज़ तुझ पे मिरी ज़िन्दगी निसार
होंटो पे तेरे ग़म में, हमेशा फुगां रहे
रहमो-करम बना रहे नाचीज़ पर तिरा
सर पर नवाजिशें का सदा सायबां रहे
'अंजुम' कभी टटोल के तू अपने दिल को देख
शायद पता चले कि वो क्यों बदगुमां रहे।