भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अश्क़ों की बुहतात हुई है / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 19 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्वरदत्त अंजुम |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अश्क़ों की बुहतात हुई है
बे मौसम बरसात हुई है
गर्दे-ग़म में रस्ते गुम हैं
मंज़िल मंज़िल मात हुई है
आप का ग़म है दिल में सलामत
अश्क़ों की बरसात हुई है
हम ने जीती बाज़ी हारी
प्यार में हम को मात हुई है
मेरे खेत हैं अब भी प्यासे
सुनता हूँ बरसात हुई है
हर जानिब से पत्थर बरसे
ये कैसी बरसात हुई है
उन के बिछड़े मुद्दत गुज़री
जैसे कल ये बात हुई है
दिल का उजाला मिट गया जल्दी
रात से पहले रात हुई है
अपनी हस्ती तो ऐ 'अंजुम'
वक़्फे-सद-आफात हुई है।