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प्यार मुझ को सभी से मिलता है / ईश्वरदत्त अंजुम

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प्यार मुझ को सभी से मिलता है
इक वही बे-रुखी से मिलता है

सर-कशी से वो मिल नहीं पाता
जो मज़ा बन्दगी से मिलता है

आजिज़ी से मिलो तो फिर जानो
क्या मज़ा आजिज़ी से मिलता है

जीत लेता है वो मिरे दिल को
जो मुझे आजिज़ी से मिलता है

शेर में उस को ढाल देता हूँ
जो मुझे ज़िन्दगी से मिलता है

कोई भी अंजुमन हो उस में मुझे
मर्तबा शायरी से मिलता है

मुतमइन हूँ मैं उस अतीये से
जो भी मुझ को खुशी से मिलता है

जब भी होती है भेंट 'अंजुम' से
दिल से मिलता है, जी से मिलता है।