भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल के अरमान जब मचलते हैं / ईश्वरदत्त अंजुम

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 20 अगस्त 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
दिल के अरमान जब मचलते हैं
हसरतों के भी पल निकलते हैं

टूटे दिल भी कहीं बहलते हैं
वो तो बस आंसुओं में ढलते हैं

ठेस लगती है उस घड़ी दिल को
लोग जब रास्ते बदलते हैं

है वही कामयाब दुनिया में
वक़्त के साथ जो बदलते हैं

मौसमे-बरशगाल हो जैसे
अश्क़ आंखों से यूँ निकलते हैं

जब ज़मीं पर क़ियाम है सब का
लोग क्यों कितना फिर उछलते हैं

जब भी होता है सामना उनका
जिस्मो-जां एक साथ जलते हैं

अज़्म उकता अगर वो ऐ अंजुम
रास्ते खुद ब-खुद निकलते हैं।