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प्यार का दर्स ज़माने को सिखाना होगा / ईश्वरदत्त अंजुम
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प्यार का दर्स ज़माने को सिखाना होगा
फिर से बुझती हुई शमओं को जलाना होगा
रूखे-रोशन पे जो पर्दा है हटाना होगा
चांद से चेहरे का दीदार कराना होगा
गर बशर चाहे की शाइस्ता नज़र आये वो
रंगे-तहज़ीबे-कुहन उसको दिखाना होगा
सारे बोसीदा ख़यालात मिटा कर दिल से
राहे-दुश्वार को आसान बनाना होगा
तुम जो चाहो कि असर उसपे हो कुछ अश्क़ों का
अपने अश्क़ों पे लहू दिल का मिलना होगा
कच्चा धागा तो नहीं खून का रिश्ता होता
ऐसे रिश्तों को बहर तौर निभाना होगा