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धर्मयज्ञ / महेन्द्र भटनागर

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आधुनिक विश्व में

‘धर्म’ के नाम पर
कैसा जुनून है ?
सभ्य प्रदेशों में
ज़िन्दा
बर्बर ‘कानून’ है,
सर्वत्र -
ख़ून-ही-ख़ून है !

नये इंसानो !
बेहतर की कामना करो,
धर्म के ठेकेदारों का
सामना करो !
विकृत धर्मों की
खुलकर अवमानना हो
(चाहे व्यापक विनाश सम्भावना हो।)

मनुष्य — मनुष्य है,
पशु नहीं !
उसे प्रबोध दो,
वह समझेगा, सँभलेगा, बदलेगा !