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है बहुत तुम पे ऐतबार मुझे / शोभा कुक्कल

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है बहुत तुम पे ऐतबार मुझे
तुम करोगे न शर्मसार मुझे

सर हथेली पे रख लिया मैंने
आई जब देश की पुकार मुझे

शायरों से मिरी गुज़ारिश है
शायरों में करें शुमार मुझे

है तुम्हारा ख़याल भी तुम सा
जो सताता है बार बार मुझे

बेरुखी से जो बात की उसने
बात गुज़री है नागवार मुझे

लहलहाती बहार के मौसम
कब से है तेरा इंतज़ार मुझे

इक तुम्हारा ख़याल शामो-सहर
करता रहता है संग-सार मुझे

भीड़ से मैं अलग हूँ ऐ 'शोभा'
क्यों करो भीड़ में शुमार मुझे।