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इक फूल तो भगवान के कदमों में चढ़ा है / शोभा कुक्कल

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इक फूल तो भगवान के कदमों में चढ़ा है
इक फूल किसी शोख़ के जुड़े में सजा है

झुकता है जो सर उसका हर इक शख्स के आगे
कुछ और नहीं उसकी पुरानी सी अदा है

अखबार के सफहात को मत देखो पलटकर
हर शख्स का चेहरा यहां खबरों में अटा है

तुम बच्चों के बस्तों की किताबों को न देखो
मां बाप का है बोझ जो बच्चों पे लदा है

दिल शोर में दुनिया के बहकता नहीं अपना
रस्ता ही नया इसने कोई सोच रखा है

पलकों पे लरज़ते हुए आसूं को न देखो
ये अश्क़ नहीं ये तो मिरे दिल की सदा है

उम्मीद है उसकी की वो आयेगा किसी दिन
पतझर में भी एक फूल शिगुफ्ता सा खिला है

सुनता न था जो बात कभी भूले से जिनकी
देखा है वो अब उनके ही सांचे ने ढला है

महफ़िल में जमाता रहा जो रंग हमेशा
क्यों आज वो तन्हा ही हमें छोड़ चला है

में जानती हूँ उसको बड़ी देर से शोभा
बचपन ही से वो शख्स बड़ा दिल का भला है।