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जाग गढ़ कि बांद जाग / महेन्द्र ध्यानी विद्यालंकार
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जाग गढ़ कि बांद जाग
जुल्म नि बणि जौ बणाग
हम नि छां कुटमणि कुंगल़ि
अर न फागुणै कि फाग,
आग भि म्यरा भितर रोष भि म्यरै भितर।
रामी बणी कचे मि द्यूंलु -
ढोंगि जोगी जु आलो क्वी।
तीलु रौतेलि बणिक
दुशमनों तैं काटि द्यूंलु मि।
चौरानबे म देख्यालि सब्यूंन
जब बणिगै छा खौंबाघ
आग भि म्यरा भितर रोष भी म्यरै भितर।
हर भाषा मि बाँचि सकदु
हर सवाल जाँचि सकदु
उडै़ सकदु मि बड़ु ज्हाज
तोप भी चलै सकदु।
निरभगि नि रैगे अब मि
अफि ल्यखलु अपड़ु भाग
आग भि म्यरा भितर रोष भी म्यरै भितर।
माँ का रूप म नौणि सी
देखण दरश म कौणि सी
दगड्या छौं देवदार सी
धागै की सुमार सी
बात बात म धकेला मितै त
बणि जौंलु कण्डल़ी झपाग।
आग भि म्यरा भितर रोष भी म्यरै भितर।