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पुंगड़यूंक जिकुड़ियूं मा उठणू धुवां दगिड़्या / शिवदयाल 'शैलज'

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पुंगड़यूंक जिकुड़ियूं मा उठणू धुवां दगिड़्या
गैळ बल्दूं कन्धा-धरिगे हज्जि जुवा दगिड़्या

एक पट्या जोळ जोतणान् नै नै हल्या
आंख्यूं रत्वा, कन्दुड़ु कोच्यूं रूवां दगिड़्या

यूं पुटग्यूं प्वड़िगे आग, झड़ना चिनगार
बथौं ब्वन्नू बचावा, पराळा थुवा दगिड़्या

फेपना खुरसें वूंका मीं थैं मिण्डण मां
दुबुलु सि मौळि गौं, छै तुमरि दुवा दगिड़्या

सौण सूखिगै चिट्ठयूं कि मयळि नवळि ’शैलज’
भादौम् ख्वजणी बडुळि-पराज , सुवा दगिड़्या