भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भवन / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 23 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर }...)
कुएँ की दीवारों जैसा
ऊँचा परकोटा,
सँकरे-सँकरे गलियारों जैसा
हर कमरा छोटा,
जिसमें,
ना उपवन
ना आँगन
आधुनिक वास्तु-कला का अंकन ?
या
संकुचित हृदय की
प्रतिकृति,
स्वकेन्द्रित मन का
दर्पण !