भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमको मुबारक शामिल होना बंजारों में / शहरयार

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:29, 23 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |अनुवादक= |संग्रह=सैरे-जहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमको मुबारक शामिल होना बंजारों में
बस्ती की इज़्ज़त न डुबोना बंजारों में

उनके लिए ये दुनिया एक अजायब घर है
हिर्सो-हवस के बीज न बोना बंजारों में

अपनी उदासी अपने साथ में मत ले जाना
ना-मक़बूल है रोना धोना बंजारों में

उनके यहां ये रात और दिन का फ़र्क़ नहीं है
उनकी आंख से जागना सोना बंजारों में

यकसां और मसावी हिस्सा सबको देना
जो कुछ भी तुम पाना खोना बंजारों में

हिजरत की ख़ुशबू से उनकी रूह बंधी है
हिजरत से बेज़ार न होना बंजारों में।