भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काश पूछे ये चारागर से कोई / शहरयार

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:44, 23 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |अनुवादक= |संग्रह=सैरे-जहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काश पूछे ये चारागर से कोई
कब तलक और यूँ ही तरसे कोई

कौन सी बात है जो उसमें नहीं
उसको देखे मेरी नज़र से कोई

सच कहे सुन के जिसको सारा जहां
झूठ बोले तो इस हुनर से कोई

ये न समझो कि बेज़बान है वो
चुप अगर है किसी के डर से कोई

हिज्र की शब हो या विसाल की शब
शब को निस्बत नहीं सहर से कोई।