भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो मैं जानती उनके लिए / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 24 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र }} Category:गीत <Poem> जो मैं जान...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो मैं जानती उनके लिए
मेरे दिल में कितना प्यार है
इतना प्यार मैं करती क्यों

जो मैं सोच-समझ के चलती
हद से बात गुज़रती क्यों
अन्जाने नयनों से उलझ के
जीते जी मैं मरती क्यों
इतना प्यार मैं करती क्यों ...

हरदम उलझी लट से उलझूँ
काजल फेरूँ अँखियन में
वो जो न आते तो मैं इतना
बनती और सँवरती क्यों
इतना प्यार मैं करती क्यों ...

हाय रे मीठा दर्द जिगर का
हाय रे पहला पहला प्यार
जो मैं जानती ये सब होगा
इस मुश्किल में पड़ती क्यों
इतना प्यार मैं करती क्यों ...

(फ़िल्म - आह)