1
काँटों पे चले
उफ़ तक भी न की
ऐसे जिए थे हम,
सैलाब आया
सब बहा ले गया
उखड़े थे कदम।
2
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी।
3
लगी जो काई
रिश्तों पर हमारे
अब हटेगी कैसे ?
रूठ के बैठी
खुशियों की किरण
अब मनाएँ कैसे?