भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आलिंगन में प्रिय / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 31 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category: ताँका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
कभी पसारो
बाँहे नभ सी तुम
मुझे भर लो
आलिंगन में प्रिय
अवसाद हर लो
2
उगता रवि
धरा का माथा चूमे
खग - संगीत
मिले ज्यों मनमीत
दिग-दिगन्त झूमे
3
ताप-संताप
मिटे हिय के सब
प्रिय -दर्शन
प्रफुल्ल तन-मन
ज्यों खिले उपवन
4
आँखें लिखतीँ
मन पर अक्षर
प्रेम-पातियाँ
उन अध्यायों पर
मैं करूँ हस्ताक्षर।
5
मन की खूँटी
झूलता फूलदान
तेरी प्रीत का
प्रिय फूल सजाऊँ
नित खिले मुस्कान।
6
 झूलती प्रीत
मन के छज्जे पर
बचपन की
सुन्दर गमले-सी
खिलें नए सुमन ।
7
बदले रंग
मन की दीवारों के,
नहीं बदली
उस पर चिपकी
तेरी तस्वीर कभी
8
मन का कोना
उदीप्त-सुवासित
प्रिय प्रेम से !
इत्र नहीं, कपूर;
पूजा के दीपक-सा ।
-0-