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रोशनी के आख्यान / मालिनी गौतम
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चिड़िया सतर्कता से रोज़ की तरह
इधर-उधर देखते हुए
बगीचे की किसी डाल पर
नहीं फुदकी,
उसने साइकस के काँटेदार झाड़ में
अपने पंख भी नहीं उलझाए,
नहीं किया इन्तज़ार
सूरज के अस्त होने पर
शाम ढले
अपने घोंसले में लौटने का।
वह तो दिन रहते ही
हो गई समाधिस्थ
बेला की सबसे मजबूत और लचीली डाल पर
जहाँ नहीं खिले थे
बेला के फूल,
फिर ढाँप कर अपने डैनों से लता को
मिटा दिया उसने दिन और रात का भेद।
चिड़िया अब फूल, पत्ते, ख़ुशबू,
साइकस, काँटे और सूरज के प्रेम में नहीं है
वह निर्मित कर रही है
प्रेम की नई भाषा
अँधेरों पर अपनी चोंच से
रोशनी के नए आख्यान लिखकर।