भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रुक जा ओ जाने वाली रुक जा / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 24 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: कहाँ जाते हो, टूटा दिल, हमारा देखते जाओ किए जाते हो हमको बेसहारा देखते ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ जाते हो,

टूटा दिल, हमारा देखते जाओ

किए जाते हो हमको

बेसहारा देखते जाओ

कहाँ जाते हो...


करूँ तो क्या करूँ

अब मैं तुम्हारी इस निशानी को

अधूरी रह गई अपनी

तमन्ना देखते जाओ

कहाँ जाते हो...


कली खिलने भी ना पाई

बहारें रूठ कर चल दी

दिया क़िस्मत ने कैसा

हमको धोखा देखते जाओ

कहाँ जाते हो...


तमन्ना थी की दम निकले

हमारा तेरी बाहों में

हमारी ख़ाक में मिलती

तमन्ना देखते जाओ

कहाँ जाते हो..