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इतवार का एक दिन / महेन्द्र भटनागर
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पूरा दिन
बीत गया इन्तज़ार में,
तमाम लोगों के इन्तज़ार में।
नहीं आया अप्रत्याशित भी,
नहीं टकराया अवांछित भी।
बीत गया
पूरा दिन,
लमहे-लमहे गिन।
इतवार इस बार का
नहीं लाया कोई समाचार
अच्छा या बुरा
रुचिकर या क्षुब्धकारक।
निरन्तर ऊहापोह में
गुज़र गया पूरा दिन।
इस या उस के
दर्शन की चाह में,
घूमते-टहलते
कमरों की राह में।
बस, सुबह-सुबह
आया अख़बार,
और दूध वाले ने
प्रातः-सायं बजायी घंटी
नियमानुसार।
अन्यथा कहीं कोई
पत्ता तक न खड़खड़ाया,
एक पक्षी तक
मेरे आकाश के इर्द-गिर्द
नहीं मँडराया।
बीत गया पूरा दिन
इन्तज़ार बन,
मूक लाचार बन।