भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर से निकले थे हौसला करके / राजेश रेड्डी
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:33, 3 सितम्बर 2018 का अवतरण
घर से निकले थे हौसला करके
लौट आए ख़ुदा ख़ुदा करके
दर्द-ए-दिल पाओगे वफ़ा करके
हमने देखा है तजुर्बा करके
ज़िन्दगी तो कभी नहीं आई
मौत आई ज़रा ज़रा करके
लोग सुनते रहे दिमाग़ की बात
हम चले दिल को रहनुमा करके
किसने पाया सुकून दुनिया में
ज़िन्दगानी का सामना करके