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उपलब्धि / जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर

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उछलती-कूदती

विपरीत
लहरों से
निरन्तर जूझते,
जीवन-मरण के बीच
अस्थिर झूलते,
दिन रात
कितनी कश-म-कश के बाद
कूल मिला !

धीरज से
कठिनतम साधना के बाद,
जीवन-सत्त्व-स्पन्दन भर
जड़ों को सींच
टटका
मुसकराता
एक
फूल खिला !