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पूछता, पाता न उत्तर / हरिवंशराय बच्चन
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पूछता, पाता न उत्तर!
जब चला जाता उजाला,
लौटती जब विहग-माला
"प्रात को मेरा विहग जो उड़ गया था, लौट आया?-"
पूछता, पाता न उत्तर!
जब गगन में रात आती,
दीप मालाएँ जलाती,
"अस्त जो मेरा सितसरा था हुआ, फिर जगमगाया?-"
पूछता, पाता न उत्तर!
पूर्व में जब प्रात आता,
भृंग-दल मधुगीत गाता,
"मौन जो मेरा भ्रमर था हो गया, फिर गुनगुनाया?-"
पूछता, पाता न उत्तर!