भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीखैत रहू / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 7 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=ककबा करै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीबू
जीबैत रहू
दोसरा लेल
अपना लेल तँ सभ जीबि लै छै।
अकास सुरुज चान तरेगन
बाध बोन पहाड़
झरना नदी समुद्र
सरदी गरमी बरसात
कुकुर बिलाइ बकरी घोड़ा
कौआ कोइली पड़बा कठफोड़वा
बाल वृद्ध वनितासँ
मंगनियेमे सीखू।
जाधरि रहत
साँसक सरगम विद्यमान
सीखैत रहू
जिनगी जीबाक कला।