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लोक / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

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शीत ऋतुमे
सुरुजक किरिन लगैत अछि अमृत
ग्रीष्म ऋतुमे
गाछक छाँह लगैत अछि अमृत
बरखा ऋतुमे
बुन्न लगैत अछि अमृत।

हमरा सभकें सचेत नहि रहलाक कारणें
प्रकृतिक भेल अछि ई दुर्दशा
घटि रहल अछि अमृत
दिनोदिन जगमे
बढ़ि रहल अछि बिख
बिख केर कोरामे आबि कऽ
बिखाह भेल जा रहम अछि
लोक।