भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्द्धरात्रि में आज़ादी / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण
अर्द्धरात्रि है ये ...
अर्द्धरात्रि को
आई थी आज़ादी
अब अर्द्धरात्रि को
आते हैं बर्बर
अर्द्धरात्रि को
आते हैं रक्तपिपासु,
अर्द्धरात्रि को
आते हैं लुटेरे,
अर्द्धरात्रि को बहुरूपिए
अर्द्धरात्रि को
फैलते हैं धरती पर रक्त के छींटे
अर्द्धरात्रि को दिशाएँ करती हैं विलाप
अर्द्धरात्रि को सुनाई देता है करुण क्रन्दन
अर्द्धरात्रि को
आज़ाद ख़यालों पर
टूटता है बर्बरों का कहर।